उत्ते॒ वय॑श्चिद्वस॒तेर॑पप्त॒न्नर॑श्च॒ ये पि॑तु॒भाजो॒ व्यु॑ष्टौ। अ॒मा स॒ते व॑हसि॒ भूरि॑ वा॒ममुषो॑ देवि दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य ॥६॥
ut te vayaś cid vasater apaptan naraś ca ye pitubhājo vyuṣṭau | amā sate vahasi bhūri vāmam uṣo devi dāśuṣe martyāya ||
उत्। ते॒। वयः॑। चि॒त्। व॒स॒तेः। अ॒प॒प्त॒न्। नरः॑। च॒। ये। पि॒तु॒ऽभाजः॑। विऽउ॑ष्टौ। अ॒मा। स॒ते। व॒ह॒सि॒। भूरि॑। वा॒मम्। उषः॑। दे॒वि॒। दा॒शुषे॑। मर्त्या॑य ॥६॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वे स्त्री-पुरुष परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्ते स्त्रीपुरुषाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
हे उषर्वद्वर्त्तमाने देवि ! या त्वं व्युष्टौ सेवमानाय सते दाशुषे मर्त्याय पत्येऽमा भूरि वामं वहसि तस्यास्ते ये पितुभाजो नरस्ते च वसतेर्वयश्चित्ते सुरूपं दृष्ट्वोदपप्तंस्तेषां मध्यात् स्वयंवरविधानेन सर्वथा प्रसन्नं पतिं त्वं प्राप्नुयाः ॥६॥